Friday, May 13, 2022

दर्द या दवा

तू दर्द है,
या दवा है ?
मेरी तक़लीफ़ों की ख़ातिमियत है,
या वज़ह है !!

जिंदादिली

गर ज़ी रहे हो ज़िन्दादिली से..
तो पल में ज़िन्दगी जी सकते हो..
वर्ना, पसमर्दगी में तो अहसास ही नही होता
कि साल कब गुज़र गए।

वक्त

दिल है,
कि भरता ही नही।
और जो ये वक्त है,
कमबख़्त !
कि ठहरता ही नही।

शख्शियत

मेरी शख्शियत
मुताबक़त में हर वक्त मशरूफ होती है।
इतना बदला हूँ जमाने के लिए,
कि मुझे, मुझमे, मेरी ही कमी महसूस होती है।

कुर्बानी

तंगदिल है हर शख्स इस जहां में,
हम क्यों खुद को
सबके लिए कुर्बान किये जाते हैं।

सैलाब

ये वो आँशू हैं,
जो तू इस धरा के सीने को चीरकर बाहर लाया है।
बेग़ैरत..
और आज तू पूछता है,
कि ये सैलाब क्यों आया है।

रात

तबियत नासाज़ है,
या और गिला है कोई?
ये हाल आखिर क्या बना रखा है,
न है कोई सुबह तेरी
न हो रही शाम है,
हर एक पहर को 
बस रात बना रखा है !

खंजर

सूरते-हाल देख
यार ने पूछा,
ये सुर्ख लाल रंग तेरे सीने पे
भला है क्या?

दर्द भूल मेरे होठों पे एक मुस्कान आई,
ना-मूजून (मूर्ख) मैं !
कि तू मासूम इतना !

बात होती
जो पूछता मैं, कि किया क्यों ऐसा ?
नाइंसाफी है ये..
खंज़र भी तेरे हाँथ में..
और सवाल भी तेरा ।

जा तू खुश रह

अच्छा चलो कोई बात नही
जा तू खुश रह,
मैं भी कहीं खुश रह लूंगा।
औ बँट ही रही है हमारी ज़िन्दगी तो,
तू चाँद रख, तारे मैं ले लेता हूँ,
शाम तेरी, दिन की धूप मैं ले लेता हूँ।
बगिया के फूल सारे तू रख,
मैं कांटे ले लेता हूँ।

    

रावण

लगता है कलयुग की भी पराकाष्ठा आई है
पहले का रावण धर्मी था, 
और दूर कहीं एक लंका थी
अब छोटी छोटी धर्मी लंकाओं में,
कितने ही रावण बैठे है।

मन में कालिख भरे हुए
कुछ सड़को, गलियों में घूम रहे,
और संतो का वेश धरे,
कुछ, महलों में आसीन हुए।

अब तो संशय है
क्या रावण को मार सका था कोई,
क्योंकि प्रभु तेरे उस युद्ध बाद भी
कितनी सीतायें रोईं।

गर धर्म युद्ध था वो,
तो वो खत्म नही हो पाया है।
रावण तो अभी भी जिंदा है,
फिर हमने किसे जलाया है?

और क्यों हम जश्न मनाते है, 
झूंठा अभिमान बचाते है,
अपनी कायरता छिपाने को
एक पुतला हर वर्ष जलाते हैं।

दर्द या दवा

तू दर्द है, या दवा है ? मेरी तक़लीफ़ों की ख़ातिमियत है, या वज़ह है !!